Tuesday, March 28, 2017

जलियाँवाला बाग हत्याकांड



13 अप्रैल 1919 की रविवार की क्रांति को  रोकने के लिये जनरल डॉयर के द्वारा सभी सभाएँ पहले ही रोक दी गयी थी लेकिन ये खबर सभी जगह ठीक से नहीं फैलाई गई थी। ये बड़ा कारण था कि जिससे कि भीड़ अमृतसर के जलियाँलावा बाग में इकठ्ठा हुई और सार्वजनिक मैदान जो जलियाँवाला बाग कहलाता है, में जलियाँवाला बाग नरसंहार हुआ। 13 अप्रैल 1919 को सिक्ख धर्म के लोगों का बैशाखी उत्सव था। जलियाँवाला बाग में उत्सव को मनाने के लिये कई गाँवो की एक बड़ी भीड़ जमा हुई थी।
जैसे ही आर.ई.एच. डॉयर को जलियाँवाला बाग में सभा होने की खबर मिली, वो अपने 50 गोरखा बँदूकधारीयों के साथ वहाँ आ गया और भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। वो सैनिक 10 मिनट (1,650 राउँड) तक लगातार निर्दोष लोगों पर गोलियाँ चलाते रहें जबतक कि उनके जेब की सारी गोलियाँ खाली नहीं हो गयी।
ब्रिटेन में पूरे ब्रिटिश साम्राज्य का वो (डॉयर) हीरो बन गया हालाँकि हाउस ऑफ कॉमन्स के द्वारा उसकी काफी आलोचना हुई और जुलाई 1920 में उसे जबरदस्ती सेवानिवृत्त कर दिया गया। प्राणघाती नरसंहार एक बड़ा कारण बना उनकी सेना का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये जिसके परिणाम स्वरुप न्यूनतम टुकड़ी की नई नीति आई जिसमें सैनिकों को बड़ी भीड़ को नियंत्रित करने का उचित तरीका बताया जाता था।

जलियाँवाला बाग हत्याकांड का इतिहास

जलियाँवाला बाग हत्याकांड अमृतसर नरसंहार के रुप में भी प्रसिद्ध है क्योंकि ये पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में घटित हुआ था। इसे भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान घटित हुआ भारतीय इतिहास के सबसे बुरी घटनाओं में से एक के रुप में माना जाता है। यह घटना 13 अप्रैल 1919 को घटित हुई, जब पंजाब के अमृतसर में जलियाँवाला बाग के सार्वजनिक मैदान में अहिंसक विद्रोहियों सहित जब एक आम लोगों (बैशाखी तीर्थयात्री) की बड़ी भीड़ जमा हुई थी। आम लोग (सिक्ख धर्म के) अपने सबसे प्रसिद्ध त्यौहार बैशाखी को मनाने के लिये इकट्ठा (कर्फ्यू घोषित होने के बावजूद भी) हुए थे जबकि ब्रिटिश सरकार के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दो नेताओं (सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलूव) की गिरफ्तारी के खिलाफ अहिंसक विरोधकर्ता भी जमा हुए थे।
11 अप्रैल को जलंधर कैंटोनमेंट से जनरल डॉयर वहाँ पहुँचा था और नगर को अपने कब्जे में ले लिया था। उसने अपनी टुकड़ी को गोली चलाने का आदेश दिया जिससे 10 मिनट तक लगतार उसके सैनिक गोली चलाते रहें। वो बेहद आक्रामक रुप से गेट की ओर गोली चलाते रहे जिससे कोई भी उस जगह से बाहर नहीं निकल पाया और सभी सीधे गोलियों का निशाना बने। ये बताया गया था कि 370 से 1000 तक या उससे ज्यादा संख्या में लोगों की मौत हुई थी। ब्रिटिश सरकार की इस हिंसक कार्रवाही ने सभी को अचंभित और हैरान कर दिया। इस कार्रवाई के बाद लोगों का अंग्रेजी हुकुमत की नीयत पर से भरोसा उठ गया जो उन लोगों को 1920-1922 के असहयोग आंदोलन की ओर ले गया।


अमृतसर के जलियाँवाला बाग में पंजाब के लेफ्टिनेंट-गवर्नर को एक बड़ी क्रांति के होने की उम्मीद थी जहाँ 15000 से अधिक लोग उत्सव मनाने के लिये इकट्ठा हुए थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोंलन के नेताओं की योजनाओं को दबाने और खत्म करने के लिये अमृतसर नरसंहार एक प्रतिक्रिया के रुप में थी। सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलूव नाम के दो प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं को छुड़ाने के लिये 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर के डिप्टी कमीशनर के आवास पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं द्वारा विरोध और माँग हो रही थी ये गिरफ्तार किये गये वो नेता थे जिन्हें बाद में ब्रिटिश सरकार द्वार किसी गुप्त स्थान पर भेजने की योजना थी। इस विद्रोह में अंग्रेजी टुकड़ी द्वारा बड़ी भीड़ पर हमला किया गया था। सत्यपाल और सैफुद्दीन ने महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आंदोलन में भी साथ दिया था।
11 अप्रैल को एक इंग्लिश मिशनरी शिक्षक, मिस मारसेला शेरवुड को भीड़ के द्वारा पकड़ कर पीटा गया था। हालाँकि बाद में उसे कुछ स्थानीय भारतीय और उसके छात्र के पिता द्वारा बचा लिया गया। अमृतसर शहर में क्रांति जारी थी जिसके दौरान रेलवे पटरी, सरकारी कार्यालय, इमारतें, टेलीग्राफ पोस्ट आदि को बुरी तरह से नुकसान पहुँचाया गया था। इस क्रांति के परिणाम स्वरुप, 13 अप्रैल को ब्रिटिश सरकार द्वारा पंजाब में मार्शल कानून घोषित कर दिया गया। इस दौरान नागरिकों के अधिकार, सभा करने की आजादी, भीड़ के इकट्ठा होने पर रोक (4 से ज्यादा लोगों को एक ही स्थान पर जुटने की मनाही) आदि पर पूरी तरह से कानून द्वारा पाबंदी लगा दी गयी थी।
उसी दिन अर्थात् 13 अप्रैल को ही सिक्ख धर्म के लोगों का एक पारंपरिक त्यौंहार बैशाखी था जिसके दौरान विभिन्न धर्मों के लोग जैसे हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख आदि अमृतसर के हरमिंदर साहिब के निकट जलियाँवाला बाग के सार्वजनिक उद्यान में इकट्ठा हुए थे। अभी सभा शुरु ही हुई थी कि जनरल डॉयर वहाँ अपने समूह के साथ आ पहुँचा जो 303 ली-इनफिल्ड बोल्ट एक्शन राइफल और मशीन गन के साथ थे, उसके सैनिकों ने पूरे मैदान को चारों तरफ से घेर लिया और बिना चेतावनी के गोलियाँ बरसानी शुरु कर दी गयी। बाद में क्रूर डॉयर ने सफाई देते हुए कहा कि ये कार्रवाई अवज्ञाकारी भारतियों को सजा देने के लिये थी जबकि वो भीड़ को तितर-बितर करने के लिये नहीं थी।
गोलियों की आवाज सुनने के बाद, लोग यहाँ-वहाँ भागने लगे लेकिन वो वहाँ से बच निकलने की कोई जगह नहीं पा सके क्योंकि वो पूरी तरह से ब्रिटिश सैनिकों से घिरा हुआ था। अपने आप को बचाने के लिये बहुत सारे लोग पास के ही कुएँ में कूद गये थे। बाद में इसी कुएँ से 120 लाशों को बाहर निकाला गया।



जलियाँवालाबाग हत्याकांड का प्रतिपुष्टी

इस घटना के होने के बाद, ब्रिटिश जनरल डॉयर ने क्रांतिकारी सेना के द्वारा अपने मुकाबले के बारे अपने वरिष्ठ अधिकारी को रिपोर्ट किया और उसके बाद एक टेलीग्राम के द्वारा लेफ्टीनेंट गवर्नर माईकल ओ ड्वायर के द्वारा घोषित किया गया कि “आपकी कार्रवाई सही थी और लेफ्टीनेंट गवर्नर ने इसे स्वीकार किया है”। ओ ड्वायर ने भी अमृतसर और उसके आस-पास के क्षेत्र में मार्शल कानून को जारी रखने का निवेदन किया था जिसे बाद में वॉयसरॉय चेम्सफोर्ड के द्वारा स्वीकृति दे दी गयी थी।
इसकी विंस्टन चर्चिल द्वारा आलोचना की गयी थी जिसके लिये उन्होंने 8 जुलाई 1920 को हाउस ऑफ कॉमन्स में बहस की थी। उन्होंने कहा कि:
लाठी को छोड़कर भीड़ के पास कोई हथियार नहीं था। किसी पर कहीं भी हमला नहीं हुआ था वहाँ जब उनको तितर-बितर करने के लिये उनपर गोलियाँ बरसायी गयी तो वो लोग इधर-उधर भागने लगे। ट्रैफेलगार स्क्वायर से भी काफी छोटी जगह पर उन्हें इकट्ठा किया गया जहाँ मुश्किल से ही कोई खड़ा हो सके तथा सभी एक साथ बँध से गये जिससे एक गोली तीन से चार लोगों को भेदती चली गयी, लोग पागलों की तरह इधर-उधर भागते रहें। जब गोली बीच में चलाने का निर्देश दिया गया तो सभी किनारे की ओर भागने लगे। उसके बाद गोली किनारे की ओर चलाने का निर्देश दिया गया। बहुत सारे जमींन पर लेट गये तो फिर गोली जमींन पर चलाने का निर्देश दे दिया गया। ये सिलसिला लगातार 10 मिनट तक चलता रहा और ये तब जाके रुका जब गोला-बारुद खत्म होने की कगार पर पहुँच गया।
हाउस ऑफ कॉमन्स में लंबी बहस के बाद, डॉयर के कृत्य की आलोचना हुई और उसके इस कार्रवाई के खिलाफ सदस्यों के द्वारा वोट किया गया। 22 मई 1919 को नरसंहार की खबर के बारे में जानकारी पाने के बाद रविन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा कलकत्ता में ब्रिटिश शासन की इस अमानवीय क्रूरता के खिलाफ एक सभा आयोजित की गयी थी।
13 अप्रैल 1919 को घटित जलियाँवाला बाग नरसंहार का वास्तविक गवाह खालसा अनाथालय के उधम सिंह नाम का एक सिक्ख किशोर था। उधम सिंह ने लंदन के कैक्सटन हॉल में लेफ्टीनेंट गवर्नर माईकल ओ ड्वायर को मारने के द्वारा 1300 से ज्यादा निर्दोष देशवासियों की हत्या का बदला लिया जिसके लिये उसे 31 जुलाई 1940 में लंदन के पेंटनविले जेल में फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

जलियाँवाला बाग हत्याकांड के जवाब में हंटर कमीशन की स्थापना

पंजाब राज्य के जलियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच करने के लिये 14 अक्टूबर 1919 को भारतीय सरकार द्वारा एक कमेटी की घोषणा हुई। लार्ड विलियम हंटर (अध्यक्ष) के नाम पर हंटर कमीशन के रुप में इसका नाम रखा गया। बॉम्बे, दिल्ली और पंजाब में कुछ ही समय पहले हुई सभी घटनाओं के बारे में अच्छे तरीके से जाँच करने के लिये इस कमीशन की स्थापना हुई।
हालाँकि डॉयर की कार्रवाई के खिलाफ हंटर कमीशन कोई भी अनुशासनात्मक कार्रवाई को लागू करने में अक्षम साबित हुआ क्योंकि उसके वरिष्ठों के द्वारा उसे भुला दिया गया। लेकिन काफी प्रयास के बाद वो गलत पाया गया और 1920 में जुलाई महीने में समय से पहले सैनिक दबाव बनाकर सेवानिवृत कर दिया गया। डॉयर की क्रूर कार्रवाई के खिलाफ केन्द्रीय विधायी परिषद में पंडित मदन मोहन मालवीय ने भी अपनी आवाज उठायी थी। उनकी व्यक्तिगत जाँच के अनुसार उन्होंने दावा किया कि 15000 से 20000 के भीड़ में 1000 लोगों से ज्यादा की जानें गयी थी।
अमृतसर में 1919 में दिसंबर महीने में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के द्वारा एक वार्षिक सत्र को रखा गया और ब्रिटिश सरकार से आग्रह किया गया कि “स्वप्रतिज्ञा के सिद्धांत के अनुसार भारत में एक पूर्णं जिम्मेदार सरकार की स्थापना के लिये जल्द कदम उठाये”। राजनीतिक कार्यवाही के लिये उनके प्रतिनिधि अंग के रुप में सिक्ख धर्म के लोगों द्वारा ऑल इंडिया सिक्ख लीग की स्थापनी की गयी। 1920-1925 के दौरान गुरुद्वारा सुधार आंदोलन के द्वारा सिक्खों के पवित्र स्थान को सुधारने की उनकी माँग थी। बब्बर अकाली के रुप में कहा जाने वाला एक विपक्षी-ब्रिटिश आतंकवादी समूह बनाने के लिये कुछ सिक्ख सैनिकों द्वारा अपनी सेना की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। अकाली आंदोलन के नेताओं के द्वारा अहिंसा को स्वीकार किया गया।

जलियाँवाला बाग स्मारक की स्थापना


अमृतसर नरसंहार के बाद जलियाँवाला बाग तीर्थस्थान का एक राष्ट्रीय स्थल बन गया। शहीदों की याद में नरसंहार की जगह पर स्मारक बनाने के लिये मदन मोहन मालवीय ने एक कमेटी का निर्माण किया। स्मारक बनाने के लिये 1 अगस्त 1920 को 5,60,472 रुपये की कीमत पर राष्ट्र के द्वारा जलियाँवाला बाग को प्राप्त किया गया। हालाँकि स्मारक का निर्माण भारत की आजादी के बाद 9,25,000 रुपये में हुआ और उसका नाम “अग्नि की लौ” रखा गया जिसका उद्घाटन उसके घटने की तारीख दिन 13 अप्रैल को 1961 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के द्वारा किया गया।
हर किनारे पर खड़े पत्थर के लालटेन के साथ एक छिछले पानी में चार तरफ वाले लाल मतवाले किनारे पर पतली लंबाई के द्वारा घिरा हुआ मध्य में 30 फीट के ऊँचें स्तंभ के साथ स्मारक बना है। राष्ट्रीय प्रतीक के एक चिन्ह के रुप में अशोक चक्र के साथ ये 300 पट्टियों से बना है। स्मारक के चारों स्तंभों पर हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी और ऊर्दू में “13 अप्रैल 1919, शहीदों की याद में” लिखा हुआ है। जलियाँवाला बाग के मुख्य प्रवेश द्वार के बहुत पास एक बच्चों की स्वीमिंग पूल बनाने के द्वारा डॉयर के सैनिकों की अवस्था को चिन्हित किया गया है।

Sunday, March 12, 2017

Saturday, February 25, 2017

My Life Quotes

My Life in Quotes




Live your life quietly, if you make a noise.. People will start hitting on you.
_________________________________________________________________


Spend time with yourself to know more about you...
_________________________________________________________________


Do not think more about others..life is one
_________________________________________________________________


Think..,Plan...Wait for the best deal, and Make it Done
_________________________________________________________________